Shishya Parampara
शिष्य परम्परा

निराकारी कुलवृक्षं, येऽर्चन्ति श्रद्धया सदा। पूर्णकामाः सदा सन्ति, ते न यान्ति पराभवम्॥

निराकारी सम्प्रदाय के प्रवर्तक आचार्य श्री स्वामी सरयूदास जी महाराज का वर्तमान समय 1722 ई0 से 1833 ई0 तक था।

श्री स्वामी नारायणदास जी महाराज के शिष्य श्री सरयूदास जी महाराज के तीन शिष्य हुए। श्री स्वामी भरतदास जी महाराज, श्री स्वामी सेवादास जी महाराज और श्री स्वामी प्रेमदास जी महाराज। 1. श्री स्वामी भरतदास जी महाराज के शिष्य हुए-श्री स्वामी रघुनाथ दास जी महाराज (खेड़ी पंजाब)। श्री स्वामी रघुनाथ दास जी महाराज के शिष्य हुए-श्री स्वामी गंगादास जी महाराज। स्वामी गंगादास जी महाराज के दो शिष्य हुए-1. श्री स्वामी चेतनदास जी महाराज 2. श्री स्वामी रामदास जी महाराज। श्रीस्वामी चेतन दास जी महाराज के तीन शिष्य हुए-1. श्री स्वामी चमेलीदास जी महाराज, 2. श्री स्वामी रामकलादास जी महाराज 3. श्री स्वामी सुखीराम जी महाराज। श्री स्वामी सुखीराम जी महाराज के चार शिष्य हुए। 1. श्री स्वामी बलरामदास जी महाराज, 2. श्री स्वामी लक्ष्मीदास जी महाराज 3. श्री स्वामी महेश्वरानन्द जी महाराज 4. श्री स्वामी हरभगवानदास जी महाराज (परमहंस आश्रम, वृन्दावन) श्री स्वामी रामदास जी महाराज के चार शिष्य हुए-1. श्री स्वामी प्यारादास जी महाराज, 2. श्री स्वामी मुक्तराम जी महाराज, 3. श्री स्वामी ऋषिराम जी महाराज, 4. श्री स्वामी एकमदास जी महाराज।

श्री ऋषिराम जी महाराज के तीन शिष्य हुए। 1. स्वामी हरदत्तदास जी महाराज 2.श्री स्वामी लक्ष्मीदास जी महाराज 3.श्री स्वामी सुखीराम जी महाराज। श्री स्वामी सुखीराम जी महाराज के शिष्य हुए-श्री स्वामी कुरुक्षेत्रदास जी महाराज। श्री स्वामी एकमदास जी महाराज के शिष्य हुए-श्री स्वामी हरिवंशदास जी महाराज। श्री स्वामी हरिवंशदास जी महाराज के शिष्य हुए-श्री स्वामी श्यामदास जी महाराज।

2-श्री स्वामी सेवादास जी महाराज के शिष्य हुए-श्री स्वामी प्रह्लाददास जी महाराज। प्रह्लाददास जी के शिष्य हुए स्वामी पूर्णदास जी महाराज। स्वामी पूर्णदास जी के दो शिष्य हुए-1.श्री स्वामी बद्रीदास जी महाराज 2. श्री स्वामी काहनदास जी महाराज।

श्री स्वामी काहनदासजी के तीन शिष्य हुए 1. श्री स्वामी माणिकदास जी महाराज । 2.श्री स्वामी हीरादास जी महाराज 3. स्वामी आत्मादास जी महाराज। श्री स्वामी माणिकदास जी के तीन शिष्य हुए 1. श्री स्वामी सुन्दरदास जी महाराज 2.श्री स्वामी गोमतीदास जी महाराज 3.श्री स्वामी निरंजनदास जी महाराज (निराकारी डेरा-ढीढ़से जि0 संगरूर पञ्जाब)। श्री स्वामी निरंजन जी के दो शिष्य हुए-1.श्री स्वामी हरवंशदास जी महाराज 2.श्री स्वामी वैद्य हरिगोपालदास जी महाराज (जाखल मण्डी हरयाणा)।

श्री स्वामी हीरादास जी महाराज के सात शिष्य हुए-1.श्री स्वामी शीतलदेव जी महाराज। 2.श्री स्वामी अखण्डानन्द जी महाराज 3.श्री स्वामी अनन्तदेव जी महाराज 4.श्री स्वामी गोपालदेव जी महाराज 5.श्री स्वामी सहदेव जी महाराज 6.श्री स्वामी कल्याणदेव जी महाराज 7.श्री स्वामी ऋषभदेव महाराज।

श्री स्वामी शीतलदेव जी के दो शिष्य हुए 1.श्री स्वामी हरिदेव जी महाराज 2.श्री स्वामी जयदेव जी महाराज| श्री स्वामी अखण्डानन्द जी के दो शिष्य हुए-श्री बाबा निहालदास जी महाराज। श्री स्वामी निहालदास जी के दो शिष्य हुए 1. श्री स्वामी आत्मप्रकाश जी महाराज (महन्त अखण्डधाम हरिद्वार) 2.श्री स्वामी अनन्तप्रकाश जी महाराज (अखण्ड भवन, हरिद्वार)। श्री स्वामी आत्मप्रकाश जी के शिष्य हुए-श्री स्वामी श्यामसुन्दर जी महाराज। श्री स्वामी अनन्तप्रकाश शिष्य हुए-श्री स्वामी हरिप्रकाश जी महाराज।

श्री स्वामी अनन्तदेव जी के शिष्य हुए-श्री स्वामी वामदेव जी महाराज। श्री स्वामी वामदेव जी के शिष्य हुए-श्री स्वामी अमरदेव जी महाराज (पञ्चतीर्थी आश्रम थाना भवन, मुजफ्फरनगर)। श्री स्वामी अमरदेव जी के छः शिष्य हुए 1.श्री स्वामी प्रीतमदेव जी महाराज 2.श्री वासुदेव जी महाराज 3.स्वामी शान्तीदेव जी महाराज 4.श्री स्वामी हरिदेव जी महाराज 5.श्री स्वामी केशवदेव जी महाराज 6.श्री स्वामी ज्ञानदेव जी महाराज।

श्री स्वामी गोपालदेव जी के दो शिष्य हुए 1.श्री स्वामी रामदेव जी महाराज 2.श्री स्वामी चेतनदेव जी महाराज। श्री स्वामी चेतनदेव जी के दो शिष्य हुए। 1.श्री स्वामी रामेश्वरदेव जी महाराज। 2. श्री स्वामी महेश्वरदेव जी महाराज। श्री स्वामी रामेश्वरदेव जी महाराज के तीन शिष्य हुए 1.श्री स्वामी इन्द्रदेव जी महाराज। 2.श्री स्वामी रुद्रदेव जी महाराज। 3.श्री स्वामी शुकदेव जी महाराज। स्वामी महेश्वर देव जी के शिष्य हुए-श्री स्वामी पुरुषोत्तम देव जी महाराज।

श्री स्वामी आत्माराम जी के दो शिष्य हुए 1.श्री स्वामी दयाराम जी महाराज। 2.श्री स्वामी ब्रह्मदास जी महाराज। श्री स्वामी ब्रह्मदास जी के चार शिष्य हुए-श्री स्वामी रामदास जी महाराज 2.श्री स्वामी शिवरामदास जी महाराज 3.श्री स्वामी उदयराम जी महाराज 4.श्री स्वामी मयाराम जी महाराज। श्री स्वामी उदयराम जी के तीन शिष्य हुए 1. श्री स्वामी रामशरण दास जी महाराज 2. श्री स्वामी हरिकिशन दास जी। 3.श्री स्वामी हरिकिशन दास जी। श्री स्वामी मयाराम जी के शिष्य हुए-श्री स्वामी गंगादास जी महाराज। श्री स्वामी गंगादास जी के चार शिष्य हुए 1.श्री स्वामी ओमप्रकाश जी महाराज 2.श्री स्वामी विश्वप्रकाश जी महाराज 3.श्री स्वामी रघुनन्दनदास जी महाराज 4. श्री स्वामी सत्स्वरूप जी महाराज। श्री स्वामी विश्वप्रकाश जी के शिष्य हुए श्री स्वामी ज्ञानप्रकाश जी महाराज।

श्री स्वामी शिवरामदास जी के सात शिष्य हुए 1.श्री स्वामी ऋषिराम जी महाराज 2.श्री स्वामी जयराम दास जी महाराज 3.श्री स्वामी रामप्रकाश जी महाराज (महन्त प्राचीन अवधूत मण्डलाश्रम, हरिद्वार) 4.श्री स्वामी गुरुचरण दास जी महाराज (भूतपूर्व अध्यक्ष उक्त आश्रम) 5.श्री स्वामी हरप्रकाश जी महाराज 6.श्री स्वामी नन्दराम जी महाराज 7.श्री स्वामी रामस्वरूपदास जी महाराज। श्री स्वामी गुरुचरणदास जी के तीन शिष्य हुए 1.श्री स्वामी चन्द्रप्रकाश जी 2.श्री स्वामी शंकरदास जी 3.श्री स्वामी लक्ष्मणदास जी महाराज। श्री स्वामी नन्दराम जी के शिष्य हुए-1.श्री स्वामी महावीर दास जी। श्री महन्त स्वामी रामप्रकाश जी महाराज के छः शिष्य हुए 1.श्री स्वामी मुनीश्वर दास जी महाराज 2.श्री स्वामी गोविन्द प्रकाश जी महाराज 3.श्री स्वामी अद्वैतप्रकाश जी महाराज 4.श्री स्वामी अनन्तप्रकाश जी महाराज 5.श्री स्वामी हरिप्रकाश जी महाराज 6.श्री स्वामी हरप्रकाश जी महाराज (भूतपूर्व महन्त प्राचीन अवधूत मण्डलाश्रम, हरिद्वार)। श्री स्वामी मुनीश्वर दास जी के शिष्य हुए-1.श्री स्वामी कृष्णदास जी महाराज। श्री स्वामी गोविन्द प्रकाश जी के आठ शिष्य हुए 1.श्री स्वामी हंसप्रकाश जी महाराज (पूर्व अध्यक्ष प्राचीन अवधूत मण्डल आश्रम, हरिद्वार) 2.श्री स्वामी सूर्यप्रकाश जी महाराज 3.श्री स्वामी वेदप्रकाश जी महाराज 4.श्री स्वामी तीर्थानन्द जी महाराज 5.श्री स्वामी श्रीप्रकाश जी महाराज 6.श्री स्वामी रामेश्वरानन्द जी महाराज 7.श्री स्वामी कृष्णदास जी महाराज 8.श्री स्वामी स्वरूपानन्द जी महाराज।

श्री स्वामी बद्रीदास जी महाराज के दो शिष्य हुए 1.श्री स्वामी जीवनदास जी महाराज 2.श्री स्वामी आरतीदास जी महाराज। श्री स्वामी आरतीदास जी के चार शिष्य हुए 1.श्री स्वामी बलरामदास जी महाराज 2.श्री स्वामी भगतराम जी महाराज 3.श्री स्वामी ऋषिराम जी महाराज 4.श्री स्वामी बल्लभदास जी महाराज। श्री स्वामी बल्लभदास जी के शिष्य हुए-श्री सूक्ष्मदास जी महाराज| स्वामी सूक्ष्मदास जी के शिष्य हुए-श्री स्वामी रामशरन दास जी महाराज (अध्यक्ष मंगल भवन, वृन्दावन)। श्री स्वामी रामशरन दास जी महाराज जी के दो शिष्य हुए 1.श्री स्वामी रामकुमार दास जी 2.श्री स्वामी सुखदर्शन दास जी महाराज। श्री स्वामी सूक्ष्मदास जी के दूसरे शिष्य हुए- श्री स्वामी ज्ञानदास जी महाराज।

श्री स्वामी भगतराम जी के दो शिष्य हुए 1.श्री स्वामी नरोत्तमदास जी महाराज 2.श्री स्वामी सोहनदास जी महाराज। श्री स्वामी सोहनदास जी महाराज के शिष्य हुए-श्री स्वामी पं0 गोपालदास जी महाराज। श्री स्वामी गोपालदास जी के शिष्य हुए-श्री स्वामी हरिविशनदास जी महाराज। श्री स्वामी नरोत्तमदास जी के शिष्य हुए 1.श्री स्वामी मयाराज जी महाराज 2.श्री स्वामी दयाराम जी महाराज। श्री स्वामी दयाराम जी के शिष्य हुए-श्री महन्त बेलीराम जी महाराज (महन्त समाध जौड़ा जि0 अमृतसर पंजाब)। श्री महन्त बेलीराम जी के शिष्य हुए-श्री स्वामी रामगोपाल दास जी महाराज।

श्री स्वामी ऋषिराम जी के शिष्य हुए-श्री स्वामी रामदास जी महाराज। श्री स्वामी रामदास जी के शिष्य हुए-श्री स्वामी बूटीदास जी महाराज। श्री स्वामी बूटीदास के दो शिष्य हुए 1.श्री स्वामी ब्रह्मानन्द जी महाराज। 2.श्री स्वामी साधुराम जी महाराज। श्री स्वामी बल्लभदास जी के दो शिष्य हुए 1.श्री स्वामी मंगलदास जी महाराज 2.श्री स्वामी निरञ्जनदास जी महाराज। श्री स्वामी मंगलदास जी के दो शिष्य हुए 1.श्री स्वामी जगदीशदास जी महाराज। 2.श्री स्वामी जगन्नाथदास जी महाराज। श्री स्वामी जगन्नाथदास जी के तीन शिष्य हुए 1. श्री स्वामी महेश्वरदास जी। 2.श्री स्वामी पूर्णदास जी महाराज 3.श्री स्वामी इन्द्रदास जी महाराज। श्री स्वामी पूर्णदास जी के तीन शिष्य हुए 1.श्री स्वामी हंसदास जी महाराज 2.श्री स्वामी शान्तिदास जी 3.श्री स्वामी मोहनदास जी महाराज। श्री स्वामी निरंजनदास जी के तीन शिष्य हुए 1.श्री स्वामी रघुनन्दनदास जी महाराज 2.श्री स्वामी महावीरदास जी 3.श्री स्वामी शीतलदास जी महाराज 4. श्री स्वामी भगवानदास जी महाराज।

श्री स्वामी जीवनदास जी के दो शिष्य हुए 1.श्री स्वामी लालदास जी महाराज 2.श्री स्वामी सन्तोष दास जी महाराज। श्री स्वामी लालदास जी के शिष्य हुए-श्री स्वामी अविनाशीदास जी महाराज। श्री स्वामी अविनाशीदास जी के सात शिष्य हुए 1.श्री स्वामी हरिप्रकाश जी महाराज 2.श्री स्वामी गोविन्ददास जी महाराज। 3.श्री स्वामी प्रह्लाददास जी महाराज 4.श्री स्वामी मोहनदास जी महाराज 5.श्री स्वामी बल्लभ दास जी महाराज 6.श्री स्वामी कृष्णदास जी महाराज 7.श्री स्वामी प्रीतमदास जी महाराज। श्री स्वामी हरिप्रकाश जी के शिष्य हुए-श्री स्वामी संबोध प्रकाश जी महाराज। (अध्यक्ष अविनाशी हरिगोविन्द धाम हरिद्वार)। श्री स्वामी सन्तोषदास जी के शिष्य हुए-श्री स्वामी देवादास जी महाराज। श्री स्वामी देवादास के शिष्य हुए-श्री स्वामी रामचरण दास जी महाराज। श्री स्वामी रामचरण दास जी के शिष्य हुए-श्री स्वामी कृष्णदास जी महाराज।

श्री स्वामी प्रेमदास जी के शिष्य हुए-गुलाबदास जी महाराज। श्री स्वामी गुलाबदास जी महाराज के दो शिष्य हुए 1.श्री स्वामी प्रीतमदास जी महाराज 2.श्री स्वामी मेहरदास जी महाराज। श्री स्वामी मेहरदास जी के शिष्य हए-श्री स्वामी करणदास जी महाराज। श्री स्वामी करणदास जी के तीन शिष्य हुए 1.श्री स्वामी वृन्दावनदास जी महाराज 2.श्री स्वामी हीरादास जी दास जी महाराज 3.श्री स्वामी श्रवणदास जी महाराज। श्री स्वामी वृन्दावनदास जी महाराज के शिष्य हुए-श्री स्वामी गुरुमुखदास जी महाराज। श्री स्वामी गुरुमुखदास जी महाराज के शिष्य हुए-श्री स्वामी जगदीशदास जी महाराज। श्री स्वामी जगदीशदास जी के शिष्य हुए-श्री स्वामी हनुमानदास जी महाराज। श्री स्वामी हनुमानदास जी के दो शिष्य हुए-1.श्री स्वामी मोहनदास जी महाराज 2.श्री स्वामी कृष्णदास जी महाराज। श्री स्वामी कृष्णदास जी के शिष्य हुए श्री स्वामी हरिदास जी महाराज (निराकारी आश्रम खड़खड़ी, हरिद्वार)।

श्री स्वामी हीरादास जी के दो शिष्य हुए 1.श्री स्वामी बिहारीदास जी महाराज 2.श्री स्वामी वासुदेवदास जी महाराज। श्री स्वामी बिहारीदास जी के आठ शिष्य हुए 1.श्री स्वामी वासुदेवदास जी महाराज। 2.श्री स्वामी बलदेवदास जी महाराज 3.श्री स्वामी वसन्तदास जी महाराज 4.श्री स्वामी हरियज्ञदास जी महाराज 5.श्री स्वामी धीरमदास जी महाराज 6.श्री स्वामी रमकादास जी महाराज 7.श्री स्वामी खुशियालदास महाराज । 8.श्री स्वामी रामचरणदास जी महाराज।

श्री स्वामी बलदेव दास जी के शिष्य हुए-श्री स्वामी रामप्रवेश दास जी महाराज। श्री स्वामी वसन्तदास जी के तीन शिष्य हुए 1.श्री स्वामी सहदेवदास जी महाराज 2.श्री स्वामी योगीन्द्रदास जी महाराज 3.श्री स्वामी अनुभवदास जी महाराज।

श्री स्वामी हरियज्ञदास जी के दो शिष्य हुए 1.श्री स्वामी ऋषभदेव जी महाराज 2.श्री स्वामी रामरतनदास जी महाराज। श्री स्वामी ऋषभदेव जी महाराज के शिष्य हुए-श्री स्वामी रामस्वरूपदास जी महाराज।

श्री स्वामी धीरमदास जी के शिष्य हुए-श्री स्वामी हरिचरणदास जी महाराज। श्री स्वामी हरिचरणदास जी के सात शिष्य हुए 1.श्री स्वामी सुग्रीवदास जी महाराज 2.श्री स्वामी गुरुभजनदास जी महाराज 3.श्री स्वामी शंकरदास जी महाराज 4.श्री स्वामी ईश्वरदास जी महाराज 5.श्री स्वामी रामकला दास जी महाराज 6.श्री स्वामी बरियामदास जी महाराज 7.श्री स्वामी मनसाराम जी महाराज।

श्री स्वामी श्रवणदास जी के शिष्य हुए-श्री स्वामी काहनदास जी महाराज। श्री स्वामी काहनदास जी के शिष्य हुए-श्री स्वामी सुन्दरदास जी महाराज। श्री स्वामी सुन्दरदास जी के दो शिष्य हुए 1.श्री स्वामी गीताराम जी महाराज (भवानी गढ़) 2.श्री स्वामी हरियतनदास जी महाराज। स्वामी गीताराम जी के शिष्य हुए- श्री स्वामी गंगादास जी महाराज।

श्री स्वामी हरियतन दास के दो शिष्य हुए 1.श्री स्वामी रामेशदास जी महाराज (निराकारी आश्रम, ऋषिकेश) 2.श्री स्वामी चकोरदास जी महाराज (डेरा सारों जि0संगरूर पंजाब)। श्री स्वामी चकोरदास जी के शिष्य हए-श्री स्वामी चन्दनदास जी महाराज। पं0 श्री स्वामी रामेश्वरदास जी के तीन शिष्य हुए 1.श्री स्वामी सुदर्शनमुनि जी महाराज 2.श्री स्वामी कृष्णदास जी महाराज 3.श्री स्वामी टहलदास जी महाराज, अखण्ड भवन वाले स्वामी अनन्त प्रकाश जी के शिष्य हुए- श्री स्वामी रामदास जी महाराज। अवधूत मण्डल हनुमान मन्दिर के महन्त स्वामी महेश्वरदेव जी के शिष्य हुए- श्री स्वामी रविदेव जी महाराज। श्री स्वामी जगन्नाथदास जी के तीसरे शिष्य हुए- श्री स्वामी इन्द्रदास जी महाराज। श्री स्वामी हीरादास जी के दूसरे शिष्य स्वामी वासुदेवदास जी महाराज के दो शिष्य हुए- श्री स्वामी हरिविशनदास जी, श्री स्वामी महावीरदास जी महाराज। श्री स्वामी महावीरदास जी के शिष्य हुए- श्री स्वामी कपूरदास जी महाराज। श्री स्वामी कपूरदास जी के दो शिष्य हुए-1.श्री स्वामी वचनदास जी (वर्तमान में श्री महन्त समाध निराकारी आश्रम, पटियाला, पंजाब)। 2.श्री स्वामी टहलदास जी महाराज। श्री स्वामी हरिविशनदास जी के शिष्य हुए-श्री स्वामी जयगोपालदास जी ।

‘एक विलक्षण व्यक्तित्त्वः महामण्डलेश्वर महन्त स्वामी रूपेन्द्र प्रकाश जी महाराज'



भारतमाता की कोख से एक आत्मा ने मानवीय शरीर धारण किया, जिसका नाम माता-पिता और गुरुजन ने ‘रूपेन्द्र' रखा। माता-पिता ने कुलधर्मानुसार उसे पढाने के लिये विद्यालय में प्रविष्ट कराया। पढने में प्रबुद्ध तथा विचारवान इस बालक को पाकर अध्यापक भी इसकी प्रशंसा करते न अघाते थे। संसार की नश्वरता को देखकर कुछ लोगों के मन में बाल्यावस्था से ही वैराग्य की भावना उत्पन्न हो जाती है। यह बालक धीरे-धीरे बाल्यावस्था से युवावस्था में प्रवेश करने लगा, किन्तु उसका व्यवहार और जीवनशैली अन्य सब बालकों से भिन्न थी। उसने सांसारिक उपाधिशिक्षा यथाशीघ्र प्राप्त कर ली, जिसमें संस्कृत, हिन्दी, गणित, विज्ञान, समाजशास्त्र, अर्थशास्त्र, भूगोल, खगोलशास्त्र, धर्मशास्त्र एवं व्यवहारशास्त्र का बोध प्राप्त कर वह अन्य बालकों से भिन्न दिखायी देने लगा और इसी बीच उसके मस्तिष्क में भाषाज्ञान की ललक ने उसे हिन्दी, संस्कृत, अंग्रेजी, पंजाबी, गुजराती भाषाओं के साथ-साथ लोकभाषा सीखने को मजबूर कर दिया। इस बालक ने इन भाषाओं को गम्भीरता से सीखा तथा इसमें विद्यमान विभिन्न महापुरुषों की जीवनी का आद्योपान्त अध्ययन किया। भारतीय तथा पाश्चात्य दर्शनों में आस्तिक और नास्तिक दर्शन का गम्भीरता से अध्ययन करते हुए आपने बौद्ध-जैन-आर्यसमाज के विभिन्न ग्रन्थों का ज्ञान प्राप्त किया।

आपके हृदय में राष्ट्र के लिये अन्यों से कुछ भिन्न करने की थी, जिसे पूरा करने के लिये आप युवावस्था में माता-पिता से सदा-सदा के लिये विदाई लेकर घर से निकल पड़े। बाह्य जगत् में आकर आप राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के राष्ट्रव्यापी सेवाकार्यों से बहुत प्रभावित हुए और इसी कारण इनके विभिन्न विद्वानों तथा प्रचारकों से आपकी अति निकटता हो गयी। संघ के प्रचारकों के निःस्वार्थ तपस्यापूर्ण जीवन और भारतमाता को परम वैभव तक पहुँचाने के उनके व्रत को देखकर इस माँ भारती के पुत्र ने राष्ट्रधर्म की सेवा करने के लिये जीवन में ठान ली। इन प्रचारकों को देखकर आपके हृदय में वैराग्य और राष्ट्रसेवा का समुद्र जोर मारने लगा। आपने हिमालय पर्वत की उच्च चोटी पर, गंगोत्री की गुफाओं में, अलखनन्दा तथा नर्मदा के तट पर निरन्तर चौदह वर्ष सात महीनों तक मौन रहते हुए योगसाधना की। योग की उच्च समाधि में पहुँचने के उपरान्त आपके अन्तःकरण में राष्ट्रसेवा का भाव बद्धमूल हो गया। इसी बीच आपके हृदय में भारतभ्रमण की ललक जाग उठी। इसी भाव को हृदय में लेकर आपने भारतवर्ष के छोटे-बड़े प्रायः सहस्रों गाँवों और नगरों को देखा। जहाँ राष्ट्र में व्याप्त गरीबी, बेरोजगारी और अशिक्षा को अति निकटता से देखने का आपको अवसर मिला। समाज की इस कुव्यवस्था को देखकर आपके हृदय में अत्यन्त दुःख और वेदना हुई। इसी कारण आपने आजन्म राष्ट्रधर्म की सेवा करने का माँ गंगा के किनारे पर हरिद्वार में व्रत ले लिया।

यहाँ आपको प्राचीन अवधूत मण्डल आश्रम हरिद्वार में स्वामी हंसप्रकाश जी महाराज के दर्शन हुए और आपने उनके सान्निध्य में राष्ट्रसेवा करनी प्रारम्भ कर दी। योग्य शिष्य को देखकर गुरुजन अत्यन्त प्रसन्न होते हैं। स्वामी हंसप्रकाश जी महाराज तपे और सधे हुए उच्चकोटि के सन्त थे, उन्हें योग्यशिष्य को पहचानते हुए देर न लगी और उन्होंने ‘रूपेन्द्र' नामक इस युवा राष्ट्रभक्त को अपने शिष्य के रूप में दीक्षित कर ‘रूपेन्द्र प्रकाश' नाम प्रदान किया। महन्त जी के ब्रह्मलीन हो जाने के उपरान्त 06.01.2013 को उत्तम सन्तों और महन्तों ने चादर उढाकर 'रूपेन्द्र प्रकाश' को इस आश्रम का महन्त तथा प्रबन्धक सर्वसम्मति से घोषित किया। इस मध्य आपने अनेकों राष्ट्रीय सेवाकार्य किये, जिनमें अभी तत्काल निर्मित गरीबों और साधुसन्तों के लिये निःशुल्क विशाल चिकित्सालय आपकी गौरवगाथा को गा रहा है, जहाँ गरीबों और सन्तों को दवा के साथ-साथ भोजन तथा वस्त्र तक की सुविधा निःशुल्क दी जा रही है। ऐसे-ऐसे अनेकों सेवाकार्यों से आप राष्ट्रसन्त के रूप में विख्यात हो गये और शीघ्र ही सन्त जगत् और समाज में आप अपने व्यवहार और राष्ट्रसेवा से इतने लोकप्रिय और समादरणीय हो गये कि पूर्ण कुम्भ के शुभ अवसर पर आपको श्री पंचायती अखाड़ा बड़ा उदासीन निर्वाण छावनी, कनखल हरिद्वार के द्वारा 06 अप्रैल 2021 को समस्त सन्तजगत् की शुभकामनाओं के साथ सन्तों के सर्वोच्च मानद अलंकरण ‘महामण्डलेश्वर' पट्टाभिषेक कर विभूषित किया गया, यह सन्तजगत् के लिये तथा राष्ट्रभक्तों के लिये महान् गौरव का विषय रहा।