गुरु परम्परा

प्राचीन अवधूत मण्डल आश्रम



अवधूत बाबा ब्रह्मदास जी महाराज
कार्यकाल (1912 - 1915)



प० पू० ब्रह्मलीन
श्री महंत शिवराम दास जी महाराज
कार्यकाल (1916 - 1933)



प० पू० ब्रह्मलीन
श्री स्वामी महंत राम प्रकाश जी महाराज
कार्यकाल (1934 - 3/5/1984)



प० पू० ब्रह्मलीन
श्री स्वामी गुरुचरण दास जी महाराज



महामण्डलेश्वर ब्रह्मलीन श्री 1008
स्वामी गोविन्द प्रकाश जी महाराज वेदांताचार्य



प० पू० ब्रह्मलीन
महंत स्वामी हरप्रकाश जी महाराज
कार्यकाल (1985 - 3/3/2002)



प० पू० ब्रह्मलीन
अनंत प्रकाशजी महाराज
कार्यकाल (5/3/2002 - 14/11/2003)


महामण्डलेश्वर श्री श्री 1008 स्वामी रूपेंद्र प्रकाश शास्त्री जी महाराज का संक्षिप्त परिचय

भारतमाता की कोख से एक आत्मा ने मानवीय शरीर धारण किया, जिसका नाम माता-पिता और गुरुजन ने ‘रूपेन्द्र' रखा। माता-पिता ने कुलधर्मानुसार उसे पढाने के लिये विद्यालय में प्रविष्ट कराया। पढने में प्रबुद्ध तथा विचारवान इस बालक को पाकर अध्यापक भी इसकी प्रशंसा करते न अघाते थे। संसार की नश्वरता को देखकर कुछ लोगों के मन में बाल्यावस्था से ही वैराग्य की भावना उत्पन्न हो जाती है। यह बालक धीरे-धीरे बाल्यावस्था से युवावस्था में प्रवेश करने लगा, किन्तु उसका व्यवहार और जीवनशैली अन्य सब बालकों से भिन्न थी। उसने सांसारिक उपाधिशिक्षा यथाशीघ्र प्राप्त कर ली, जिसमें संस्कृत, हिन्दी, गणित, विज्ञान, समाजशास्त्र, अर्थशास्त्र, भूगोल, खगोलशास्त्र, धर्मशास्त्र एवं व्यवहारशास्त्र का बोध प्राप्त कर वह अन्य बालकों से भिन्न दिखायी देने लगा और इसी बीच उसके मस्तिष्क में भाषाज्ञान की ललक ने उसे हिन्दी, संस्कृत, अंग्रेजी, पंजाबी, गुजराती भाषाओं के साथ-साथ लोकभाषा सीखने को मजबूर कर दिया। इस बालक ने इन भाषाओं को गम्भीरता से सीखा तथा इसमें विद्यमान विभिन्न महापुरुषों की जीवनी का आद्योपान्त अध्ययन किया। भारतीय तथा पाश्चात्य दर्शनों में आस्तिक और नास्तिक दर्शन का गम्भीरता से अध्ययन करते हुए आपने बौद्ध-जैन-आर्यसमाज के विभिन्न ग्रन्थों का ज्ञान प्राप्त किया।

आपके हृदय में राष्ट्र के लिये अन्यों से कुछ भिन्न करने की थी, जिसे पूरा करने के लिये आप युवावस्था में माता-पिता से सदा-सदा के लिये विदाई लेकर घर से निकल पड़े। बाह्य जगत् में आकर आप राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के राष्ट्रव्यापी सेवाकार्यों से बहुत प्रभावित हुए और इसी कारण इनके विभिन्न विद्वानों तथा प्रचारकों से आपकी अति निकटता हो गयी। संघ के प्रचारकों के निःस्वार्थ तपस्यापूर्ण जीवन और भारतमाता को परम वैभव तक पहुँचाने के उनके व्रत को देखकर इस माँ भारती के पुत्र ने राष्ट्रधर्म की सेवा करने के लिये जीवन में ठान ली। इन प्रचारकों को देखकर आपके हृदय में वैराग्य और राष्ट्रसेवा का समुद्र जोर मारने लगा। आपने हिमालय पर्वत की उच्च चोटी पर, गंगोत्री की गुफाओं में, अलखनन्दा तथा नर्मदा के तट पर निरन्तर चौदह वर्ष सात महीनों तक मौन रहते हुए योगसाधना की। योग की उच्च समाधि में पहुँचने के उपरान्त आपके अन्तःकरण में राष्ट्रसेवा का भाव बद्धमूल हो गया। इसी बीच आपके हृदय में भारतभ्रमण की ललक जाग उठी। इसी भाव को हृदय में लेकर आपने भारतवर्ष के छोटे-बड़े प्रायः सहस्रों गाँवों और नगरों को देखा। जहाँ राष्ट्र में व्याप्त गरीबी, बेरोजगारी और अशिक्षा को अति निकटता से देखने का आपको अवसर मिला। समाज की इस कुव्यवस्था को देखकर आपके हृदय में अत्यन्त दुःख और वेदना हुई। इसी कारण आपने आजन्म राष्ट्रधर्म की सेवा करने का माँ गंगा के किनारे पर हरिद्वार में व्रत ले लिया।

यहाँ आपको प्राचीन अवधूत मण्डल आश्रम हरिद्वार में स्वामी हंसप्रकाश जी महाराज के दर्शन हुए और आपने उनके सान्निध्य में राष्ट्रसेवा करनी प्रारम्भ कर दी। योग्य शिष्य को देखकर गुरुजन अत्यन्त प्रसन्न होते हैं। स्वामी हंसप्रकाश जी महाराज तपे और सधे हुए उच्चकोटि के सन्त थे, उन्हें योग्यशिष्य को पहचानते हुए देर न लगी और उन्होंने ‘रूपेन्द्र' नामक इस युवा राष्ट्रभक्त को अपने शिष्य के रूप में दीक्षित कर ‘रूपेन्द्र प्रकाश' नाम प्रदान किया।

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प्राचीन अवधूत मण्डल आश्रम का संक्षिप्त परिचय

प्राचीन अवधूत मण्डल आश्रम

आश्रम के मुख्य द्वार पर लगे शिलालेख से यह ज्ञात होता है कि आश्रम का अधिकतर निर्माणकार्य 1912 ई0 में ही पूरा हो चुका था। दुर्दैववश आश्रम की स्थापना के तीन वर्षों के पश्चात् ही आश्रम के संस्थापक दोनों महापुरुष एक ही वर्ष सन् 1915 ई0 में ब्रह्मलीन हो गये। तदनन्तर श्री बाबा ब्रह्मदास जी महाराज के परम सुयोग्य शिष्य श्री स्वामी मयाराज जी महाराज ने आश्रम के शेष निर्माण कार्य को सम्पन्न किया तथा उन्होंने 12 सदस्यों की एक समिति गठित करके 1 मार्च 1917 ई0 को इसका पञ्जीकरण भी करवा दिया। श्री स्वामी मयाराज जी महाराज के ब्रह्मलीन होने पर बाबा ब्रह्मदास जी महाराज के अपर योग्यतम शिष्य श्री स्वामी शिवरामदास जी महाराज इस आश्रम के महन्त (प्रबन्धक) बनाये गये।

सन् 1933 ई0 में जब श्री स्वामी शिवरामदास जी भी ब्रह्मलीन हो गये, तब उनके परम तपोनिष्ठ शिष्य सन्तप्रवर श्री स्वामी रामप्रकाश जी महाराज ने आश्रम के महन्त/प्रबन्धक के दायित्व को संभाला। उन्होंने लगभग 51 वर्षों की लम्बी अवधि तक पूर्ण समर्पण भाव से इस आश्रम का सञ्चालन किया एवं अपनी कार्यकुशलता से इसकी कीर्ति में चार चाँद लगा दिये। इधर महन्त जी महाराज आश्रम में रहकर आश्रम की मर्यादा को अक्षुण्ण रखते हुए सम्यक् संचालन करते थे, तो उधर दूसरी तरफ उनके गुरुभाई स्वामी गंगादास जी महाराज ने घर-घर, गांव-गांव घूमकर प्राचीन अवधूत मण्डल आश्रम के सेवाकार्यों को बढाते थे तथा आश्रम के खातेदार बनाने में दिन-रात एक कर देते थे। इसी प्रकार तपोमूर्ति अद्भुत प्रतिभा के विद्वान् एवं प्रखर वक्ता श्री स्वामी गुरुचरण दास जी महाराज जिन्हें भक्तजन ‘पण्डित जी' के नाम से जानते थे, उन्होंने आश्रम की समिति के अध्यक्ष पद को सुशोभित करते हुए पूरे भारतवर्ष में भ्रमण कर धर्मप्रचार करते हुए जनता-जनार्दन का मार्गदर्शन एवं निराकारी सम्प्रदाय की प्रतिष्ठा में श्रीवृद्धि की। इस प्रकार वे जनता में सभी वर्गों के अन्तर्गत बड़े ही लोकप्रिय एवं पूज्य हुए। इन दोनों महापुरुषों ने स्वामी गोविन्द प्रकाश जी महाराज को साथ लेकर इस आश्रम एवं इसकी शाखाओं से इतर स्थलों में भी नगर-नगर एवं गाँव-गाँव में कन्या विद्यालय, महाविद्यालय, चिकित्सालय, गोशाला, मन्दिर, धर्मशाला आदि का निर्माण करवाकर जन-जन को असाधारण रूप से उपकृत किया तथा चारों दिशाओं में अवधूत मण्डल तथा निराकारी सम्प्रदाय का नाम एवं मान ऊँचा किया। इस प्रकार इन श्री महन्त जी ने प्रबन्धक के रूप में कुशल प्रशासन के द्वारा आश्रम की छवि को चार चांद लगाये।

दुर्भाग्यवश सन् 1978 ई0 के अन्त में पण्डित जी महाराज ब्रह्मलीन हो गये। तब पूज्यपाद स्वामी श्री गोविन्द प्रकाश जी महाराज (जो महन्त श्री स्वामी रामप्रकाश जी महाराज के शिष्यों में वरिष्ठ एवं महान् विद्वान् तथा कुशलतम प्रशासक संचालक थे) के अनेकानेक शिष्यों में अग्रणी तथा वेदान्तमार्तण्ड अति प्रखरवक्ता परमविरक्त श्री स्वामी हंसप्रकाश जी महाराज आश्रम समिति के अध्यक्ष बनाये गये, आपने अपने दादा-गुरु पण्डित जी महाराज के चरण चिह्नों का अनुकरण करते हुए उसी प्रकार से देशभर में घूम-घूम कर धर्म-प्रचार करना अपने जीवन का लक्ष्य निर्धारित किया एवं लगातार अन्त तक इसी भाव से सेवा करते रहे। इस प्रकार लगातार 51 वर्षो तक महन्त का उत्तरादायित्त्व ग्रहण करने के बाद मई सन् 1984 को महन्त श्री स्वामी रामप्रकाश जी महाराज आश्रमवासियों को बिलखता छोड़कर ब्रह्मलीन हो गये। तब आश्रम ने अपनी बैठक में सर्व-सम्मति से श्री स्वामी हरप्रकाश जी शास्त्री, वेदान्ताचार्य, जो स्वामी रामप्रकाश जी महाराज के शिष्यों में अन्यतम थे, को इस आश्रम का महन्त/प्रबन्धक बनाने का प्रस्ताव सर्वसम्मति से पारित किया। तदनुसार 3 मई 1985 को पूर्वमहन्त स्वामी रामप्रकाश जी महाराज की प्रथम पुण्यतिथि (पहली वर्षी) के अवसर पर स्वामी श्री हरप्रकाश जी महाराज की महन्ती (पगड़ी) की रस्म श्री भेष भगवान् द्वारा विशाल साधु समाज एवं भक्त समुदाय की उपस्थिति में विधिपूर्वक सम्पन्न की गई।

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Donation

स्वामी जी ने विविध स्थानों पर आश्रम बनाकर अपने अनुयाईयो की सुविधा एवं समाज के लिए गौशाला, कॉलेज, अस्पताल, वृद्धाश्रम, विधवा आश्रम, अनाथ आश्रम, विकलांग आश्रम इत्यादि समाज कल्याण हेतु बनवाने का दृढ संकल्प किया है।

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प्राचीन अवधूत मण्डल आश्रम हरिद्वार, उत्तराखंड में स्थित एक गैर-लाभकारी संगठन है।

किसी भी प्रकार के दान के लिए निचे दिए गए नंबर पर कॉल करें। 9027988716

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